Bhagavad Gita: Chapter 3, Shloka 16
श्लोक:
एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह य: |
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति || 16 ||
Transliteration:
evaṁ pravartitaṁ cakraṁ nānuvartayatīha yaḥ |
aghāyur indriyārāmo moghaṁ pārtha sa jīvati || 16 ||
Translation:
He who does not follow the wheel of creation set of going in this world (i.e., does not perform his duties), sinful and sensual, he lives in vain, O Arjuna.
Explanation:
इस श्लोक में भगवान कृष्ण अपने कर्तव्यों के पालन का महत्व बताते हैं। 'सृष्टि का पहिया' त्याग, कर्तव्य और कर्म के चक्र को संदर्भित करता है जो दुनिया को बनाए रखता है। जो लोग इस चक्र को अनदेखा करते हैं और केवल कामुक सुखों के लिए जीते हैं वे पापी माने जाते हैं और उनका जीवन व्यर्थ माना जाता है। किसी के निर्धारित कर्तव्यों के अनुसार, व्यापक भलाई के लिए निस्वार्थ कार्यों में संलग्न होने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है

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