Bhagavad Gita: Chapter 3, Shloka 8
Sanskrit (Devanagari):
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥ ८॥
Transliteration:
niyataṁ kuru karma tvaṁ karma jyāyo hyakarmaṇaḥ |
śarīra-yātrāpi ca te na prasiddhyed akarmaṇaḥ || 8 ||
Translation:
You should perform your prescribed duties, for action is better than inaction. Even the maintenance of your body would not be possible without action.
Commentary and Analysis:
इस श्लोक में, भगवान कृष्ण अपने कर्तव्यों के पालन के महत्व और निष्क्रियता के परिणामों पर जोर देते हैं।
1. निर्धारित कर्तव्यों का पालन करना: कृष्ण अर्जुन को अपने निर्धारित कर्तव्यों में संलग्न रहने की सलाह देते हैं। ये कर्तव्य समाज में व्यक्ति की स्थिति और जीवन स्तर से निर्धारित होते हैं। कार्रवाई, विशेषकर जब कर्तव्य के रूप में की जाती है, निष्क्रियता से श्रेष्ठ मानी जाती है।
2. क्रिया का महत्व:
निष्क्रियता से शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह से नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। यहां तक कि बुनियादी अस्तित्व, जैसे शरीर के रखरखाव, के लिए भी कार्रवाई की आवश्यकता होती है। कर्म के बिना कोई भी जीवन कायम नहीं रख सकता।
3. आध्यात्मिक महत्व: श्लोक यह भी बताता है कि निष्क्रियता से ठहराव और गिरावट आती है। आध्यात्मिक विकास और प्रगति के लिए, धार्मिक कर्तव्यों में सक्रिय संलग्नता आवश्यक है। बिना आसक्ति और समर्पण के साथ अपना कर्तव्य निभाने से आत्म-शुद्धि होती है और व्यक्ति का उद्देश्य पूरा होता है।

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